चलिए बात करते हैं उस ‘अदृश्य जादू’ की – RFID क्या बला है?


कभी सोचा है कि जब आप टोल प्लाज़ा पर आते हैं, तो बिना रुके पैसे कट कैसे जाते हैं? न कोई आदमी, न कोई रसीद – बस एक बीप, और गाड़ी आगे!

यही है RFID टेक्नोलॉजी का कमाल।

RFID का मतलब है Radio Frequency Identification। नाम भारी है, लेकिन बात सीधी है – ये टेक्नोलॉजी रेडियो सिग्नल के ज़रिए चीजों को पहचानती है। न स्कैनर की ज़रूरत, न लाइन में लगने की झंझट।

ज़रा सोचिए – एक छोटा सा टैग, और इतना बड़ा काम। और यही UPSC जैसे एग्जाम्स में भी पूछा जाता है।


चलिए थोड़ा टेक्निकल हो जाएं – RFID काम कैसे करता है?

अरे घबराइए मत! टेक्निकल हैं, लेकिन टेढ़े नहीं।

RFID टेक्नोलॉजी तीन चीज़ों पर टिकी होती है:

  1. RFID टैग (Tag) – ये वो छोटा चिप होता है, जिसे गाड़ियों में FASTag की तरह लगाया जाता है।
  2. RFID रीडर (Reader) – टोल प्लाज़ा पर लगे डिवाइस जो उस टैग से सिग्नल पकड़ते हैं।
  3. डेटा प्रोसेसिंग सिस्टम – जो सारी जानकारी स्टोर और प्रोसेस करता है।

जब आपकी गाड़ी टोल के पास आती है, रीडर RFID टैग से रेडियो वेव्स के जरिए कनेक्ट करता है और डेटा पढ़ता है – जैसे गाड़ी नंबर, अकाउंट डिटेल्स वगैरह। और फिर पलक झपकते ही पैसे कट जाते हैं।

जैसे किसी दुकान के बाहर बैठे पंडित जी बिना पूछे कुंडली पढ़ लें – कुछ वैसा ही है।

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Active vs Passive टैग – ये क्या नया झमेला है?

अब RFID टैग भी दो किस्म के होते हैं:

  • Active टैग: इसमें बैटरी होती है, ये खुद सिग्नल भेजते हैं। महंगे होते हैं, लेकिन रेंज ज़्यादा होती है (100 मीटर तक)।
  • Passive टैग: इनमें बैटरी नहीं होती। ये Reader से आने वाले सिग्नल से एनर्जी लेते हैं और जवाब भेजते हैं। FASTag वाले टैग इसी कैटेगरी में आते हैं।

यानी… Passive टैग वो हैं जो बिना कहे भी समझ जाते हैं। Active टैग तो जैसे माइक पकड़ कर बोलने वाले नेता!


FASTag – RFID का सबसे बड़ा ‘सड़क स्टार’

अब मुद्दे की बात – FASTag क्या है?

FASTag एक स्टिकर होता है जो आपके वाहन के विंडशील्ड पर चिपकाया जाता है। इसमें RFID टैग होता है जो आपके बैंक अकाउंट या वॉलेट से लिंक होता है।

जब आप टोल प्लाज़ा पर पहुंचते हैं, तो RFID Reader आपके टैग को पहचानता है और टोल फीस अपने-आप कट जाती है। लाइन, झगड़े, चिल्ल-पों – सब खत्म।

अब सोचिए – रोज़ टोल पर 2 मिनट बचें, तो साल में लगभग 12 घंटे। मतलब एक पूरा दिन! और यही वजह है कि सरकार ने इसे अनिवार्य बना दिया है।


अब बात करें UPSC की – क्यों ज़रूरी है ये टॉपिक?

कई बार UPSC प्रीलिम्स में ऐसे सवाल आते हैं, जो दिखते सामान्य हैं लेकिन उनमें टेक्नोलॉजी छुपी होती है। जैसे:

Q: RFID टेक्नोलॉजी का उपयोग कहाँ होता है?
a) केवल टोल प्लाज़ा
b) केवल सुपरमार्केट
c) केवल सुरक्षा में
d) उपरोक्त सभी

सही जवाब है – d) उपरोक्त सभी

RFID का इस्तेमाल आज:

  • ई-पासपोर्ट में,
  • मेट्रो कार्ड में,
  • रेलवे टिकटिंग में,
  • एग्जाम सेंटर में (जैसे UPSC की कॉपी ट्रैकिंग),
  • हॉस्पिटल मरीज ट्रैकिंग तक में हो रहा है।

तो भले ही ये एक छोटी चिप हो, लेकिन एग्जाम हॉल में ये आपको बड़ा फायदा दिला सकती है।


थोड़ा हटके – RFID बनाम बारकोड

बहुत से लोग पूछते हैं – जब बारकोड है, तो RFID क्यों?

चलिए तुलना कर लेते हैं:

तुलनाRFIDबारकोड
स्कैन की ज़रूरतनहींहाँ
लाइन में लगनानहींहाँ
डेटा स्टोरेजज़्यादासीमित
रेंज100 मीटर तक (Active में)कुछ इंच
कीमतथोड़ी महंगीसस्ती

अब समझ आया कि Amazon और Flipkart अपने गोदामों में RFID क्यों यूज़ करते हैं? क्योंकि वो स्पीड और accuracy दोनों चाहते हैं।


भारत में RFID – क्या बस FASTag तक ही सीमित है?

बिलकुल नहीं।

RFID टेक्नोलॉजी भारत में अब:

  • रेलवे टिकटिंग में (हज़ारों कोच में टैग लगाए जा चुके हैं),
  • कचरा प्रबंधन (स्वच्छ भारत मिशन में),
  • बायोमेडिकल वेस्ट ट्रैकिंग,
  • किडनैपिंग केस में GPS ट्रैकिंग के साथ,
  • और यहाँ तक कि गौवंश ट्रैकिंग में भी इस्तेमाल हो रही है।

अभी हाल में हरियाणा सरकार ने RFID टैग से अवैध खनन ट्रकों को ट्रैक करना शुरू किया है। यानी एक टैग, कई काम!


क्या RFID से जुड़ी कोई दिक्कतें भी हैं?

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। RFID भी कोई परियों की कहानी नहीं है।

चुनौतियाँ क्या हैं?

  • टैग्स की कीमत – बारकोड से महंगे होते हैं।
  • प्राइवेसी का खतरा – बिना जानकारी के भी स्कैन किया जा सकता है।
  • डेटा चोरी – अगर encryption न हो, तो डेटा लीकेज संभव है।

इसलिए जैसे डिजिटल पेमेंट के साथ साइबर सिक्योरिटी चाहिए, वैसे ही RFID में भी डेटा सुरक्षा अहम है।


एक छोटा चिप, बड़ी क्रांति – और आपका फायदा?

अगर आप एक छात्र हैं, तो ये विषय आपके लिए scoring हो सकता है – साइंस & टेक, इन्फ्रास्ट्रक्चर, सरकार की योजनाएं – सब जगह फिट बैठता है।

अगर आप एक आम नागरिक हैं, तो RFID आपको:

  • लाइन से बचाता है,
  • समय बचाता है,
  • पेमेंट्स आसान बनाता है,
  • और गाड़ी चोरी हो तो ट्रैकिंग भी संभव बनाता है।

कुल मिलाकर, RFID वो invisible helper है, जो न दिखे… लेकिन काम ज़रूर करता है।


चलते-चलते – कुछ इग्ज़ाम फ्रेंडली फैक्ट्स

  • RFID का अविष्कार: 1940s में हुआ, लेकिन व्यापक प्रयोग 2000 के बाद।
  • इंडिया में सबसे पहले प्रयोग: हाईवे टोल पर (2016 के आसपास)
  • FASTag अनिवार्य कब हुआ: फरवरी 2021 से
  • FASTag ऑपरेटर्स: ICICI, HDFC, Paytm, PhonePe जैसे 30 से ज़्यादा बैंक

आख़िरी बात – “जो दिखता नहीं, वो भी सवाल बन सकता है”

UPSC सिर्फ GK नहीं पूछता, वो सोचने की आदत भी पूछता है। और RFID जैसी टेक्नोलॉजी इसीलिए अहम है – क्योंकि ये हमारे चारों तरफ है, लेकिन अक्सर हमारी नज़र नहीं जाती।

तो अगली बार जब FASTag बीप करे, तो याद रखिए – ये सिर्फ पेमेंट नहीं, टेक्नोलॉजी की ताक़त है।


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